सभोपदेशक 6
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
धन से प्रसन्नता नहीं मिलती
6 मैंने जीवन में एक और बात देखी जो ठीक नहीं है। यह समझना बहुत कठिन है कि 2 परमेश्वर किसी व्यक्ति को बहुत सा धन देता है, सम्पत्तियाँ देता है और आदर देता है। उस व्यक्ति के पास उसकी आवश्यकता की वस्तु होती है और जो कुछ भी वह चाह सकता है वह भी होता है। किन्तु परमेश्वर उस व्यक्ति को उन वस्तुओं का भोग नहीं करने देता। तभी कोई अजनबी आता है और उन सभी वस्तुओं को छीन लेता है। यह एक बहुत बुरी और व्यर्थ बात है।
3 कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक जीता है और हो सकता है उसके सौ बच्चे हो जाये। किन्तु यदि वह व्यक्ति उन अच्छी वस्तुओं से संतुष्ट नहीं होता और यदि उसकी मृत्यु के बाद कोई उसे याद नहीं करता है मैं कहता हूँ कि 4 उस व्यक्ति से तो वह बच्चा ही अच्छा है जो जन्म लेते ही मर जाता है। 5 उस बच्चे ने कभी सूरज तो देखा ही नहीं। उस बच्चे ने कभी कुछ नहीं जाना किन्तु उस व्यक्ति की किस्मत जिसने परमेश्वर की दी हुई वस्तुओं का कभी आनन्द नहीं लिया, उस बच्चे को अधिक चैन मिलता है। 6 वह व्यक्ति चाहे दो हजार वर्ष जिए किन्तु वह जीवन का आनन्द नहीं उठाता तो वह बच्चा जो मरा ही पैदा हुआ हो, उस एक जैसे अंत अर्थात् मृत्यु को आसानी से पाता है।
7 एक व्यक्ति निरन्तर काम करता ही रहता है क्यों? क्योंकि उसे अपनी इच्छाएँ पूरी करनी है। किन्तु वह सन्तुष्ट तो कभी नहीं होता। 8 इस प्रकार से एक बुद्धिमान व्यक्ति भी एक मूर्ख मनुष्य से किसी प्रकार उत्तम नहीं है। ऐसे दीन—हीन मनुष्य होने का भी क्या फायदा हो सकता। 9 वे वस्तुएँ जो तुम्हारे पास है, उनमें सन्तोष करना अच्छा है बजाय इसके कि और लगन लगी रहे। सदा अधिक की कामना करते रहना निरर्थक है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
10-11 जो कुछ घट रहा है उसकी योजना बहुत पहले बन चुकी होती है। एक व्यक्ति बस वैसा ही होता है कि जैसा होने के लिए उसे बनाया गया है। हर कोई जानता है लोग कैसे होते हैं। सो इस विषय में परमेश्वर से तर्क करना बेकार है क्योंकि परमेश्वर किसी भी व्यक्ति से अधिक शक्तिशाली है।
12 कौन जानता है कि इस धरती पर मनुष्य के छोटे से जीवन में उसके लिये सबसे अच्छा क्या है? उसका जीवन तो छाया के समान ढल जाता है। बाद में क्या होगा कोई नहीं बता सकता।
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